महाभारत का अंतिम चरण, एक भयंकर द्वन्द युद्ध व दुर्योधन की पराजय के साथ एक अधर्म का सर्वनाश, परन्तु लुप्त तथ्यों पर प्रकाश डालने पर एक प्रश्न उठता है की अधर्मी कौरव थे कि पांडव??
सांझ का समय,दुर्योधन अपनी अंतिम साँसों को गिन रहा है एकाएक एक स्वर दुर्योधन को पुकारता हुआ...भाई, भाई दुर्योधन...
दुर्योधन आँखें खोलता है तो देखता है की युधिष्टर उससे मिलने आया है. दोनों का ये संवाद एक विवादित पहलु उजागर करता है और यह सोचने पर विवश करता है की दुर्योधन का कर्म, कोई अधर्म नहीं था...बहुत साल पहले एक पाठ पढ़ा था जो कि माखन लाल चतुर्वेदी द्वारा लिखित है.
दुर्योधन आँखें खोलके जैसे ही युधिष्टर को देखता है, बोल पढता है-
दुर्योधन-- जीवन भर मुझसे द्वेष रखा,मृत्यु पर तो मुझे चैन प्रदान होने देते, क्या देखने आये हो मेरी विवशता, या अब भी तुम्हारी छल पूर्ण विजय में कोई त्रुटी रह गयी??
युधिष्टर- नहीं भाई, तुमने जो किया वो अधर्म था और इसका यही अंत होना था...
युधिष्टर- और यह तुम्हे भी ज्ञात था दुर्योधन की तुमने सर्वदा अधर्म का साथ दिया.