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Friday, December 23, 2011

महाभारत की एक सांझ

महाभारत का अंतिम चरण, एक भयंकर द्वन्द युद्ध व दुर्योधन की पराजय के साथ एक अधर्म का सर्वनाश, परन्तु लुप्त तथ्यों पर प्रकाश डालने पर एक प्रश्न उठता है की अधर्मी कौरव थे कि पांडव??
सांझ का समय,दुर्योधन अपनी अंतिम साँसों को गिन रहा है एकाएक एक स्वर दुर्योधन को पुकारता हुआ...भाई, भाई दुर्योधन...
दुर्योधन आँखें खोलता है तो देखता है की युधिष्टर उससे मिलने आया है. दोनों का ये संवाद एक विवादित पहलु उजागर करता है और यह सोचने पर विवश करता है की दुर्योधन का कर्म, कोई अधर्म नहीं था...बहुत साल पहले एक पाठ पढ़ा था जो कि माखन लाल चतुर्वेदी द्वारा लिखित है. 


दुर्योधन आँखें खोलके जैसे ही युधिष्टर को देखता है, बोल पढता है-
दुर्योधन-- जीवन भर मुझसे द्वेष रखा,मृत्यु पर तो मुझे चैन प्रदान होने देते, क्या देखने आये हो मेरी विवशता, या अब भी तुम्हारी छल पूर्ण विजय में कोई त्रुटी रह गयी??
युधिष्टर- नहीं भाई, तुमने जो किया वो अधर्म था और इसका यही अंत होना था...
युधिष्टर- और यह तुम्हे भी ज्ञात था दुर्योधन की तुमने सर्वदा अधर्म का साथ दिया.


दुर्योधन- मृत्यु के वक़्त तो मुझे मेरे असली नाम से बुला लो अगर मुझसे इतनी ही सांत्वना है तो??
युधिष्टर- मुझे क्षमा करना,परन्तु तुम्हे पूरी सृष्टि दुर्योधन के नाम से जानेगी न की तुम्हारे असली नाम से...जो की 'सुयोधन' है.

दुर्योधन( एक पीड़ामई मुस्कान के साथ)
---सृष्टि...हाहा,ये सृष्टि और ये युग वही जानेगी जो इन्हें इतिहास बतायेगा,और मुझे ज्ञात है की तुम इतिहास अपनी देख- रेख में ही लिख्वाओगे.

युधिष्टर-तुमने कर्म भी तोह ऐसे ही किये हैं भाई.
दुर्योधन- ऐसे क्या कर्म किये हैं?? मैंने क्या अनुचित किया?? तुम तो ५ भाई थे मेरे तो १०० भाई थे. क्या उत्तर देता सबको??
युधिष्टर- बड़ा भाई मैं था,राज काज का अधिकार मेरा था न की तुम्हारा?
दुर्योधन--ये अधिकार तुमको किसने दिया?? मेरे पिता( ध्रितराष्ट्र) बडे भाई थे और तुम्हारे पिता (पांडू) को राज का अधिकार कार्यवाहक के रूप में मिला था.
युधिष्टर-परन्तु राजा तो वही थे. हम परस्पर बैठ कर राज्य का विभाजन भी तो कर सकते थे? तुमने फिर भी युद्ध ही चुना, क्या वो सही था?? क्या वो सही था की तुम्हारी
विशाल सेना का सामना हम मात्र ५ भाइयो ने किया..तुमने छल और बल दोनों का उपयोग किया फिर भी परास्त हुए.
दुर्योधन( हँसते हुए)-- ५?? तुम्हारे साथ तो सृष्टि के पालनहारे थे, श्री कृष्ण स्वयम तुम्हारे साथ थे...वरण तुम कहाँ हमको परास्त कर सकते थे? भीष्म पितामाह, द्रोणाचार्य सब युद्ध तो मेरी तरफ से रहे थे परन्तु विजय तुम्हारी चाहते थे...
युधिष्टर-क्युकी वो भी धर्म के साथ थे दुर्योधन.

दुर्योधन( क्रोध में)
-- अब तो मर रहा हु,अब तो मुझे मेरे नाम से पुकार लो.

युधिष्टर-- क्षमा करना सुयोधन...मेरा औचित्य तुम्हे ठेस पहुचाने का नहीं था.
दुर्योधन-- रहने दो, मुझे सत्य का ज्ञात है, द्रोणाचार्य का प्रिय अर्जुन तो शत्रु था, फिर भी तुमने सबको धोखे से मारा??
युधिष्टर---धोखे से??
दुर्योधन-- हाँ, धोखे से...भीष्म पितामह, कर्ण, मैं ....सबको.
युधिष्टर- और जैसे तुमने अभिमन्यु का वध किया था, वो तो एक बालक था.
दुर्योधन-- मुझे कदापि ज्ञात नहीं था की ऐसा उसके साथ होगा,वोह चक्रव्यूह का औचित्य अर्जुन के लिए था...मुझे पता होता, तो मैं उसका वध नहीं होने देता.
युधिष्टर-- तुमने हरसंभव प्रयास किया हमारा सर्वनाश करने का ..
दुर्योधन--व्यर्थ के तर्क देना बंद करो युधिष्टर...मैं जानता हूँ की उस ग्लानी का क्या अर्थ होता है जो मैंने बचपन से गुरुकुल में तुम भाइयो के सापेक्ष्य में भोगी....अर्जुन सर्वदा द्रोणाचार्य का प्रिय था...अगर वो इतना बड़ा धनुधर था क्यों एकलव्य का अंगूठा गुरु दक्षिणा में द्रोणाचार्य ने मांग लिया?? क्युकी उनको पता था की एकलव्य बड़ा धनुधर बनेगा, अर्जुन से भी बड़ा.
अगर भीम इतना शक्तिशाली था तो क्यों उसने मुझे छल से हराया?? क्यों उसको कृष्ण के सहारे की ज़रूरत पड़ी??
यह सब भी छोडो,तुमने तो कर्ण को शुद्र पुत्र ठहरा दिया, जो असली योधा था, उसने मेरा साथ क्यों दिया होता अगर मैं अधर्मी होता?? वो सच्चा मित्र था,सच्चा योधा था,उसके साथ भी तुमने धोखा किया...मेरे अंधे माँ-बाप की मैं एक महत्वपूर्ण लाठी था,मेरा ही नहीं मेरे सारे भाइयो का वध कर दिया...मृत्यु पश्चात क्या मुह दिखाओगे??

युधिष्टर--तुम्हे अपना किया कुकर्म नहीं दिख रहा दुर्योधन..मैंने सोचा था की तुम पश्चताप करना चाहते होगे...परन्तु तुम
दुर्योधन- कैसा पश्चाताप?? कृष्ण ने तुम्हे बचाया,उन्होंने मेरी माता को छला,मुझे,सबको छला..
युधिष्टर- मदद में तुमने श्री कृष्ण की सेना को चुना, उनको नहीं
दुर्योधन--हाहा, वो लीला रचाते हैं,वो मेरी तरफ होते तब भी मैं हारता,मुझे पता था महाभारत का येही अंत होगा, परन्तु मैं घुटने नहीं टेक सकता था...और मुझे गर्व है खुद पे.

युधिष्टर( हंसते हुए)--झूठी प्रशंसा तुम्हारी आदत रही है शुरू से..अपने बुरे कर्मो पे कैसा गर्व??
दुर्योधन( क्रोध में)-- हाँ, तुमने तो द्रौपदी को भी जुए के दाव में लगा दिया था धर्मराज, तुमने अपने सगे भाई कर्ण का वध भी धोखे से होने दिया...तुम्हारी माता ने तुम्हे सत्य नहीं बताया जो कर्ण जानता था..क्युकी वो योधा था,असली दानवीर और धर्मी.

युधिष्टर( थोड़ी देर बाद)--अब तुम्हारा अंतिम समय है सुयोधन,मुझे क्षमा करना कोई ठेस पहुची हो तो??

सुयोधन-- नहीं,यह दिखावा मेरे सम्मुख मत करो...मैंने जो किया,वो मेरे और मेरे भाइयो के अधिकार के लिए था...मुझे पता है की सारे युग 'इतिहास' के द्वारा छले जायेंगे..मेरा नाम दुर्योधन पुकारा जायेगा,तुम वीर कहलाओगे...मुझे कोई ग्लानी नहीं है...मई अब सो रहा हूँ और बहुत शान्ति की निद्रा में लीं हो रहा हूँ, बचपन से नहीं सो पाया हूँ, बरगद के पेड़ के निचे पलने वाला पौधा बनके रह गया हूँ,परन्तु अब कोई अन्धकार नहीं है, कोई युधिस्टर,भीम,अर्जुन,नकुल,सहदेव नहीं हैं...कोई राज्य नहीं है,कोई प्रजा नहीं है, कोई अधिकार नहीं नहीं है,कोई धर्म-अधर्म नहीं है, जिज्ञासा नहीं है, लालसा नहीं है, झूठ नहीं है और सच भी नहीं है

सिर्फ मेरी माता और उनकी गोद में मेरी लुप्त हुयी निद्रा है....आह!!!!

( अंतिम 'वाक्य' सुयोधन के मुख से)....."मुझे सदैव एक बात का दुख रहेगा की मेरे पिता अंधे थे." था...

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